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वसंत में वृक्षो की सुध लेवे

 
वसंत में वृक्षो  की सुध लेवे

मौसम की बात करें तो ऋतुराज वसंत पर वृक्षों पत्तियां अभिवादन के लिए जमीन पर बिछ जाती है ।टेसू के फूल खिलने लगते है |आमों के वृक्ष पर आए मोर (आम के फूल ) ऐसे लगते मानों जैसे सेहरा बांध रखा हो  एवं नव कोपले स्वागत गीत गा रही हो । ऋतुराज बसन्त गुलाबी ठंड प्रकृति में नया रस घोलती है ।वृक्ष .वसंत के सूचक और हमारे जीवन में  उपयोगी,पूजनीय रहे है ।सूखे पहाड़ो पर बिना पत्ती के वृक्ष अपनी वेदना किसे बताये बारिश होगी तभी इन वृक्षों पर हरियाली अपना डेरा जमा सकेगी।बस इन्हें इन्सान काटे ना |क्योकि होली के समय चोरी से ऐसे वृक्षों को बेजान समझकर ,बिना अनुमति के लोग काटने का प्रयत्न करने की फ़िराक मे रहते है |वृक्षों से ही जंगल, पहाड़ का सौंदर्य है |वृक्ष ही इन्सान के मददगार एवं अंतिम पड़ाव तक का साथी होता है व पशु-पक्षियों को आसरा होता है।

ऋतुराज वसंत  

पेड़ों की पत्तियां झड़ रही
मद्धम हवा के झोकों से
चिड़िया विस्मित चहक रही
ऋतुराज वसंत धीमे से आरहा
आमों पर मोर फूल की खुशबू
संग हवा के संकेत देने लगी
टेसू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख
पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए
वो बता नहीं पा रहा पेड़ का दर्द
लोग समझेंगे बेवजह राई का पर्वत
पहाड़ ने पेड़ो की पत्तियों को समझाया
मै हूँ तो तुम हो
तुम ही तो कर रही वसंत का अभिवादन
गिरी नहीं तुम बिछ गई हो
और आने वाली नव कोपलें जो है तुम्हारी वंशज
कर रही वसंत के आने इंतजार
कोयल के मीठी राग अलाप से
लग रहा वादन हो जैसे शहनाई का
गुंजायमान हो रही वादियाँ में
गुम हुआ पहाड़ का दर्द
जो खुद अपने सूनेपन को
टेसू की चादर से ढाक रहा
कुछ समय के लिए
अपना तन।

संजय वर्मा "दृष्टि "
125 शहीद भगत सिंह मार्ग
मनावर जिला धार (म प्र )

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