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बेटियों का आंगन समीक्षा

 
बेटियों का काव्य संग्रह -बेटियों का आंगन 

सच में अगर हम ध्यान से देखें तो स्त्री ही तो प्रकृति का साक्षात् रूप होती है; दोनों ही सृजन करती हैं और दोनों के बिना ही यह धरती बंजर होने में देर नहीं लगेगी Iपुस्तक के आवरण चित्र में एक प्यारी-सी बच्ची पेड़ पर बंधे झूले में झूलती दिखाई दे रही है, जब हमने काव्य संग्रह को खोला तो यही बच्ची जगह-जगह पर तमाम मोहक रूपों में दिखी और हम अभिभूत होते चले गए...संजय वर्मा 'दॄष्टि "  का  काव्य  संग्रह - "बेटियों का आंगन "में भाव पक्ष  एक मजबूत पक्ष रहा है । विभिन्न विषयों को समेटे हुए कवि ने 65 काव्य रचना के जरिये जीवन के यथार्थ को काफी गहराई से तलाशा जाकर संग्रह में तराशा है ।शब्दो की जादूगरी में साहित्य परंपरा का में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है जो की साहित्य में बेहतर कार्य है |भाषा और भाव का पक्ष देखे तो भावपूर्ण है जिससे हिंदी के समाधान की जीत निश्चित है | कवि की सर्जन सामर्थ्य की परिपक्वता काव्य रचनाओं में स्पष्ट झलकती है|
"पत्तियां भी होती है बेटियों की तरह वृक्ष घर को ये कर जाती सूना रूठ कर करती है जिद्दी फरमाइशें पिता वृक्ष कर देते पूरी फरमाइश " 
 भिन्न भावों को दिशा देने वाली काव्य रचना पाठकों के हृदय में सीधे  उतर कर विषयों के प्रतिबिम्बों से हमें रुबरु करवाती है |
"मै धड़कन से कहता इसमें बसती है बिटियाँ थमना न वर्ना रो देगी हर आँगन की बिटियाँ हर वक्त तुम खुश रहो मेरी प्यारी सी बिटियाँ "
कवि की असाधारण प्रतिभा किसी प्रशंसा की मोहताज नहीं है|आज इस इक्कीसवीं सदी तक पहुँचते-पहुँचते हम शिक्षित तो खूब हुए पर हमने प्रकृति को ध्वंस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी Iकभी-कभी तो यूँ लगता है कि हमारी सारी प्रगति और उन्नति के मूल में यह विध्वंस ही छिपा है I हमने प्रकृति का सारा संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है I जब कभी सुनामी या उत्तराखण्ड जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो हम इस पर खूब भाषणबाज़ी करते हैं पर अगले ही क्षण फिर से इससे खिलवाड़ करने लगते हैं I हम सब अपने स्वार्थ में अंधे होकर अपने वर्तमान में होने वाले व्यवसायिक फ़ायदे में लगे हैं, भविष्य की तो मानो हमें कोई चिंता ही नहीं है I नदियों से अवैध खनन का मामला हो या अंधाधुंध वनों की कटाई या फिर पहाड़ों को काट-काटकर बस्तियाँ और शहर बसाना हो या महिला उत्पीड़न ,बालिका-भ्रूण हत्याएं...सब कुछ असंतुलन ही तो पैदा कर रहा है जिसके परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भोगने के लिए अभिशप्त होंगी I अगर हम ऐसे ही चलते रहे तो उनके लिए यही तोहफ़ा तो छोड़कर जाएँगे ना I 
आजकल चारों ओर पर्यावरण बचाओ, बेटी बचाओ की खूब चर्चा है I इस विषय पर समूचा जगत चिंतित भी दिखाई दे रहा है और एक साथ खड़ा भी I जगह-जगह इस पर बड़ी-बड़ी कांफ्रेंस हो रही हैं और खूब लिखा पढ़ा जा रहा है Iकाव्य संग्रह में घरेलु हिंसा ,नारी उत्पीडन व्यवहार की दुर्दशा को बड़े ही सार्थक ढंग से प्रस्तुत किया है ।यह संत्रास और पीड़ा का उन्मूलन होना चाहिए ताकि सभी खुशहाल जीवन जी सके ।
"ससुराल जब जाती बेटियाँ यादें घरों में छोड़ जाती बेटियाँ जब-जब संदेशा भेजती बेटियाँ मन ो खुश कर जाती बेटियाँ आँखों में सदा ही बसती बेटियाँ आँसू बन संग हमारे रहती बेटियाँ "
बेहतर भावों भरे पहलू ह्रदय वेदना को झकझोर  जाते है| संजय वर्मा "दॄष्टि " की लेखन की शैली संग्रहणीय तो है ही साथ ही स्तरीयता के मुकाम हासिल भी करती जा रही है | जो की कवि की लेखनीय परिपक्वता को प्रतिबिंबित करता है |कविता स्वतः बोल उठती है-"  
   बेटी होती विदा 
मन परेशान है 
घर होगा तेरे बिन सूना 
आँखे आज हैरान है।

दिल का टुकड़ा छूटा 
आँगन बेजान है 
कोई आवाज आती नहीं 
दस्तक बेजान है।

तेरे बिना बहते नयन 
मन अब उदास है 
पायल की आवाज आती नहीं 
अंगना भी उदास है 
अपनी साहित्य विधा के हर रंग का जादू बिखेरने वाले  कवि यूँ तो जन -जन में लोकप्रिय है उतनी ही उनकी धार्मिक एवं साहित्यिक कर्म में रूचि अम्बर को छू रही है |स्वयं को बड़ा कभी न महसूस समझने की भावना का एक नया रूप और मंशा "बेटियों का आंगन" काव्य संग्रह में स्पष्ट झलकती है| संग्रह के शीर्षक से ही हमें इस बात का पता चलता है कि  अपने नगर के अलावा देश -विदेश  में भी अपनी पहचान के झंडे गाड़े है ।कविता के भावो को देखे|   
प्रेम पूजा रिश्तों का बीज होती है बेटी 
बड़े ही नाजों से घरों में पलती है बेटी बाबुल की हर बात को मानती है बेटी घर में माँ के संग हाथ बटाती है बेटी
छोटे भाइयों को डांटती समझाती है बेटी माता-पिता का दायित्व निभाती है बेटी संजा,रंगोली,आरती को सजाती है बेटी घर में हर्ष उत्साह,सुकून दे जाती है बेटी
ससुराल जाती तो बहुत याद आती है बेटी पिया के घर रिश्तों में ऊर्जा भर जाती है बेटी इंसानी जिंदगी का मूलमंत्र होती है बेटी दुनिया होती है अधूरी जब न होती है बेटी 
 
 काव्य रसिकों को शब्दों के चुम्बकीय आकर्षण में बांध कर एक नई उर्जा का संचार करते है । इस कला की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम होगी। हार्दिक बधाई ।

कवि -संजय वर्मा "दॄष्टि "
125 ,बलिदानी भगत सिंह मार्ग   मनावर जिला धार मप्र 9893070756 
प्रकाशक - हमरुह प्रकाशन नई दिल्ली ,110001 
मो न 9315833506 प्रकाशन वर्ष 12/2023 .

समीक्षक -मंजू वर्मा मनावर जिला धार मप्र 

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