भ्रमण खगोलीय घटनाकई ग्रह एक लाइन में नजर आयेंगे
21जनवरी को आकाश में कई ग्रह एक लाइन में नजर आयेंगे | ये संयोग दर्शनीय होगा | दूसरा पक्ष देखे तो तारों का टूट कर पृथ्वी की कक्षा में गिरना अलग बात है।ये एक खगोलीय घटना होती है जिसमें किसी ग्रह पर आकाश के एक ही स्थान से बार-बार कई उल्काएं बरसते हुए प्रतीत होती हैं। यह उल्का वास्तव में खगोलीय मलबे की धाराओं के ग्रह के वायुमंडल पर अति-तीव्रता से गिरने से प्रस्तुत होते हैं। अधिकतर का आकार बहुत ही छोटा (रेत के कण से भी छोटा) होता है इसलिए वह सतह तक पहुँचने से बहुत पहले ही ध्वस्त हो जाते हैं। अधिक घनी उल्का वर्षा को उल्का बौछार(उल्कापात) कहते हैं ।उल्कापात दरअसल वे तारे न होकर छोटे आकाशीय पिंड होते हैं, जिन्हें विज्ञान की भाषा में 'उल्का' कहा जाता है। जब कोई उल्का पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो अपनी तीव्र गति से उत्पन्न हुए घर्षण के कारण वह वायुमंडल में जल उठती है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न हुए प्रकाश के कारण वह टूटते हुए तारे प्रतीत होते हैं। इस प्रकार की खगोलीय घटना को छात्र छात्राएं,,खगोल शास्त्र में रुचि रखने वालो ने अवश्य देखना चाहिए।इसी तरह उल्का पिंडों की बात करें तो वैज्ञानिकों की नजर उल्कापिंडों पर रहती है।हर साल सोशल मीडिया पर खबर आती है कि अंतरिक्ष से धरती पर उल्का पिंड गिरने की संभावना है.।उल्का पिंड धरती से नहीं टकराता बल्कि एक भय का वातावरण के मन में भर जाता।अभी सोशल मीडिया पर धरती की और उल्का पिंड के नजदीक से गुजरने की संभावना की बताई जा रही है।ऐसे उल्कापिंडों का परिभ्रमण दोबारा कई वर्षो बाद फिर से संभव होता आरहा है। पृथ्वी से टकराने का ऐसी अफवाओं पर अंकुश लगाना आवश्यक है क्योंकि अंतरिक्ष में करोड़ो उल्का पिंड तैरते रहते है। जिनकी पृथ्वी से दूरी लाखों करोड़ों मील है। सभी ग्रहों का अपना गुरुत्वाकर्षण है।ऐसे छोटे-छोटे उल्का पिंड पृथ्वी के करीब यानि लाखों किलोमीटर और अत्यंत तेज रफ़्तार से गुजरते रहते है। कुछ पृथ्वी की कक्षा में आने के पूर्व नष्ट हो जाते है। भविष्य में संभावित खतरों से पृथ्वी वासियों की रक्षा के लिए नासा वैज्ञानिक,खगोल शास्त्री,आदि की अंतरिक्ष पर नजरें है।खबरों की अफवाहों को फैलने से रोका जाए। . एक जानकारी के मुताबिक पृथ्वी से करीब 500 प्रकाश वर्ष दूर 'सी आई टाउ ' नामक तारे की खोज हुई| वैज्ञानिक शोध के जरिए यह पता लगाने की कोशिश कर रहे कि क्या बृहस्पति जैसे बड़े ग्रहों को तारों के सबसे नजदीकी कक्ष में पहुँचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है या नहीं |सवाल ये है कि क्या इस तरह की नई खोज से ज्योतिष गणना में इन्हें सम्मिलित किया जायेगा ? क्योकि सूर्य ,चंद्र ,मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र एवं शनि ग्रह ज्योतिष गणना में प्रमुख माने गए है ।साथ ही राहू -केतु ग्रह ,जिनका अपना अलग प्रभाव एवं कथाएँ प्रचलित है ।ये भी ज्योतिष गणना का आधार मजबूत करते है । नए ग्रह जीजा,शेरॉन और सेरेंश की पूर्व में खोज की गई थी ।इन सात ग्रहों के नाम क्या रखे जाए ये मुद्धा अब चर्चा में है ।21 से 25 जनवरी को ग्रहों की परेड यानि एक कतार में तथा धूमकेतु परिभ्रमण भी आकाश में आसानी से देखे जा सकेंगे | अब तक सौरमंडल के बाहर 3500 ग्रहों की खोज हुई है।ये नए ग्रह सूर्य से आउटर ग्रह की श्रेणी में आते होंगे।जो ग्रह सूर्य से इनर की श्रेणी में है ,उनमे गुरुत्वाकर्षण शक्ति तथा प्रभाव ज्यादा होता होगा ।जो आउटर की श्रेणी में है उनमें प्रभाव कम होता होगा।कई ग्रह नए ग्रह आउटर श्रेणी में हो सकते है जिनका परिभ्रमण लाखों /करोड़ों साल में ब्रहाण्ड में होता होगा? सारांश वर्तमान में यह है कि माने गए 9 ग्रह अपना प्रभाव गुरुत्वाकर्षण के जरिए दिखाते है|जिसके आधार पर ज्योतिष गणना का भी महत्व है।शायद ,सूर्य से दूरी भी नए ग्रहों के प्रभाव को कम करती होगी ?इसलिए भविष्य की गणना के लिए ज्योतिष में सम्मिलित नहीं किए जाते होंगे ।ऐसी परिस्थिति नए सात ग्रहों एवं नई खोज के ग्रहों के साथ भी स्थिति बनेगी।
संजय वर्मा दृष्टि '125 , भगतसिंग मार्ग ,मनावर (धार )
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