मोबाइल कम चलाइए स्वास्थ्य का लाभ पाइये
सोशल मीडिया पर रील का जो फंडा चल रहा है।उसमें अश्लील शब्दों का अभिनय के साथ ऐसा माहौल पैदा हुआ कि आप मोबाइल में रील देखते -देखते कब अभिनय करने वाले नंगी गालियां बकने लग जाये।इसका देखने वालों को भान नहीं रहता।मोबाइल की आवाज परिवार में सुनाई देती है।विकृति फैलाता ये रील के धंधे पर अंकुश की आवश्यकता है।पहले से ही युवा पीढ़ी ऑन लाइन गेम में बर्बाद हो चुकी और ऊपर से विकृत मानसिकता को बढाने वाले वीडियो।अब तो गांव -गांव में वीडियो रील बनाने का चलन जोरो पर है।अनपढ़ भी बनाने लगे।स्वस्थ मन, ना होने से रेप,अश्लील बोली,छेड़खानी,खतरनाक स्टंट,सोशल मीडिया पर कम कपड़ो में देह प्रदर्शन(हाल ही में इंदौर की घटना सुर्खियों में आई थी)आदि को बढ़ावा मिल रहा है।सेंसर बोर्ड इसका भी तो होगा ही ऐसी रील के प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी जाना चाहिए।अधिकांश लोग वाहन चलाते समय चालक अपने मोबाइल को कान और कंधे के बीच दबाकर बातचीत करते हुए वाहन चलाते है उनका ध्यान बातचीत पर ही ज्यादा रहता ही ।पीछे हार्न देने वाले की भी वो सुनते नहीं ऐसे में दुर्घटना संभव है ।जरुरी बात भी करना होतो थोड़ा सा ठहर के बात करना चाहिए । बेटियों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु गांव,शहर में बेटियों की सुरक्षा हेतु संस्था गठित की जाना चाहिए।ताकि मोबाइल की सूचना और तथ्य के माध्यम से आवारा लोगो को सुधारा जा सकें।कई स्थानों पर हेल्पलाइन सुविधा भी होती है।और शिकायत पेटी भी अलग- अलग स्थानों पर लगाईं भी गई है |नजदीकी पुलिस स्टेशन पर ऐसी हरकतों की शिकायत करना साथ ही अपने माता पिता को भी ऐसी घटना की जानकारी अवश्य देना चाहिए।युवाओं स्वभाव के बदलाव से भविष्य के चिंतन प्रश्न उठने लगे है ।वृद्ध माता पिता को भी चाहिए की वे इलेक्ट्रॉनिक युग की भाग दौड़ भरी दुनिया में से युवा पीढ़ी के लिए समझाइश हेतु कुछ समय निकाले ।परिजनों को चाहिए की वे वृद्ध लोगो की अनदेखी न करे।और उन का तिरस्कार न कर बल्कि उनका सम्मान करे क्योकि उन्होंने ही परिवार शब्द एवं आशीर्वाद की उत्पत्ति की है । एक मित्र ने इस विषय पर बोला था की "बा अदब बा नसीब -बे अदब बे नसीब " इसके अलावा बच्चों के जीवन की और तनिक झांके तो पाएंगे की बदलते परिदृश्य में सब कुछ बदलता चला गया ।बच्चे तो है मगर बचपन ग़ुम हो गया ।कहानियां नहीं बची ।दादी -नानी ,माँ लोरिया और कहानियाँ सुनाती थी तो ज्ञानार्जन में वृद्धि होती थी वही कोलाहल से दूर एकाग्रता का समावेश होता था मीठी नींद जो की अच्छे स्वास्थ्य का सूचक होती वो इनसे प्राप्त होती थी किन्तु वर्तमान में इलेट्रॉनिक की दुनिया में ,भागदौड़ की व्यस्तम जिंदगी में अपने लिए साथ बिताने का समय लोग नहीं निकाल पाते जिससे रिश्तेदारी का व्यवहारिक ज्ञान भी पीछे छूट सा गया है ।कहानी से कल्पनानाओं की उत्पत्ति होती वही मातृत्व दुलार भी सही तरीके से प्राप्त होता ,। अब ये चिंता सताने लगी की कही कहानियां विलुप्त न हो जाये नहीं तो रिश्तो का सेतु ढह जायेगा और बच्चे लाड - प्यार और कहानियों से वंछित हो जायेगे । हाईटेक होते युग में मोबाइल और इंटरनेट ही सहारा बन गए है । दादी -नानी की कहानियां सुनने की प्रथा जैसे अब विलुप्ति की कगार पर जा पहुंची हो । लेखनी की पहचान
लेखनी में होती शक्ति
सो बका एक लिखा
लेखनी को क्यों मोबाइल
खा गया
सुंदर लेखनी में अवगुण आ गया
खो गया व्याकरण
सुखी और सूखी में
अंतर नही कर पा रहा
लेखनी त्रुटि रहित हो
युवा पीढ़ी को
मोबाइल से दूर रखना होगा
साहित्य जगत में शुद्धता का
यह लेखनी का लाभ होगा।
संजय वर्मा "दृष्टि"
125,बलिदानी भगत सिंह मार्ग
मनावर जिला धार मप्र
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