Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सूनी होली

 
सूनी होली
 
मोहन को होली की मस्ती बचपन में कुछ ज्यादा ही रहती थी।पापा से  उसका रंग और पिचकारी के लिए जिद्द करना।माँ का डाटना यानि कपडे बिस्तर परदे आदि ख़राब न करदे और घर के बाहर जाकर रंग खेले की हिदायत मिलना तो आम बात थी।मोहन बड़ा हुआ  तो दोस्तों के साथ होली खेलना घर के सदस्यों ,रिश्तेदारो को छोड़ होली के दिन दिन भर बाहर  रहना ये हर साल का उसका क्रम रहता था।मोहन ने शादी होने के बाद शुरू शुरू में पत्नी के संग होली खेली कुछ सालो बाद में फिर दोस्तों के संग।घर में बुजुर्ग सदस्य की भी इच्छा होती थी  की कोई हमें भी रंग लगावे हम भी खेले होली।वे बंद कमरे में अकेले बैठे रहते और उन्हें दरवाजा नहीं खोलने की बाते भी  सुनने को मिलती कि "बाहर से मिलने जुलने वाले लोग आयेंगे तो वे घर का फर्श,दीवारे  ख़राब कर देंगे।"इसलिए या तो बाहर बैठो नहीं तो दरवाजा बंद  कर दो।मोहन के पिता बाहर बैठे रहते।अक्सर देखा गया की बुजुर्गो को कोई रंग नहीं लगाता वे तो महज घर के सदस्यों का लोग बाग पूछते तो वे बताते रहते। ऐसा लगता है की घरों में बुजुर्गो के साथ बैठ कर भोजन करने एवं उन्हें बाहर साथ ले जाने की  परम्परा तो मानो विलुप्त सी हो गई हो।
मोहन की पत्नी तबियत ख़राब रहने लगी।कुछ समय बाद उसका स्वर्गवास हो गया।होली का समय आया तो होली पर मृतक के यहाँ जाकर रंग डालने की परम्परा होती है वो हुई ,रिश्तेदार रंग डालकर चले गए ।अगले साल फिर होली के समय घर के  बाहर होली खेलने वालो का हो हल्ला सुनाई दे रहा था।मोहन दीवार पर लगी पत्नी की तस्वीर को देख रहा था।उसे पत्नी  की बाते  याद आ रही थी"-क्या जी दिन भर दोस्तों के संग होली खेलते हो मेरे लिए आपके पास समय भी नहीं है।मै होली खेलने के लिए  मै  हाथो में रंग लिए इंतजार करती रही।इंतजार में रंग ही फीका पड हवा में उड़ गया।" 
मोहन आँखों में आंसू लिए  दोनों हाथो में गुलाल लिए तस्वीर पर  गुलाल लगा  सोच रहा था।वार -त्यौहार पर तो घर के लिएभी कुछ समय निकालना था।वे पल लौट कर नहीं आ सकते जो  गवा दिए । 
 जब बच्चों माँ जीवित थी तो बच्चे एक दूसरे को रंग लगाने के लिए दौड़ते तब वे माँ के आँचल में छुप जाते थे।अब मोहन के बच्चे मोहन और घर के बुजुर्गो को रंग लगा रहे थे।हिदायते गायब हो चुकी थी । मोहन दोस्तों से आँखों में आँसू लिए हर होली पे यही बात को दोहराता -" त्यौहार तो आते है मगर अब लगते है सूने से ।" 
संजय वर्मा "दृष्टि "
125 बलिदानी भगतसिंह मार्ग 
मनावर जिला धार ( म प्र )

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ