स्वप्न
बादलों की ओट में
खिला छुपा चाँद
पहाड़ों पर जाती पगडण्डी
मन आकाश में
चाँद के इंतजार में
घुप्प अंधेरा रात स्याही
विरहन सी
पत्तो की सरसराहट
उल्लू की कराहती आवाजे
लगता मृत्यु जीवन को गले लगाए बैठी।
चाँद निकला बादलों से
सूखे दरख्तो सूखी नदियों ने
ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न
जंगल कम ,नदियाँ प्रदूषित हो सूखी
मानों ऐसा लगता
मोत हो चुकी पर्यावरण की
धरा से आँखे चुराता चाँद
छूप जाता बादलों की ओट।
निंद्रा टूटी स्वप्न छूटा
भोर हुई
नई उम्मीदों से जंगल सजाने
नदियों की कलकल
चिड़ियों की चचहाहट ने दिया
पर्यावरण को पुनर्जन्म।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY