आज बिदा का दिन है देखूँ जी भर के.
क्या मालूम कल किसका दिल टूटे-दरके..
बिम्ब आँख में भर लूँ आज तुम्हारा फिर.
जिसे देख जी पाऊँ मैं हँस मर-मर के..
अमन-चैन के दुश्मन घेरे, कहते है:
दूर न जाओ हम न बाहरी, हैं घर के..
पाप मुझे कुछ जीवन में कर लेने दो.
लौट सकूँ, चाहूँ न दूर जाना तर के..
पूज रहा है शक्ति-लक्ष्मी को सब जग.
कोई न आशिष चाह रहा है हरि-हर के..
कमा-जोड़ता रहूँ चाहते हैं अपने.
कमा न पाये जो चाहें जल्दी सरके..
खलिश 'सलिल' का साथ न छूटे कभी कहीं.
रहें सुनाते गीत-ग़ज़ल मिल जी भर के..
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY