Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज बिदा का दिन है

 

आज बिदा का दिन है देखूँ जी भर के.

 

क्या मालूम कल किसका दिल टूटे-दरके..

 

बिम्ब आँख में भर लूँ आज तुम्हारा फिर.

 

जिसे देख जी पाऊँ मैं हँस मर-मर के..

 

अमन-चैन के दुश्मन घेरे, कहते है:

 

दूर न जाओ हम न बाहरी, हैं घर के..

 

पाप मुझे कुछ जीवन में कर लेने दो.

 

लौट सकूँ, चाहूँ न दूर जाना तर के..

 

पूज रहा है शक्ति-लक्ष्मी को सब जग.

 

कोई न आशिष चाह रहा है हरि-हर के..

 

कमा-जोड़ता रहूँ चाहते हैं अपने.

 

कमा न पाये जो चाहें जल्दी सरके..

 

खलिश 'सलिल' का साथ न छूटे कभी कहीं.

 

रहें सुनाते गीत-ग़ज़ल मिल जी भर के..

 

 

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