छंद सलिला:
ताटंक : यति १६ - १४, पदांत मगण
संजीव
*
आये हैं लड़ने चुनाव जो, सब्ज़ बाग़ दिखलायें क्यों?
झूठे वादे करते नेता, किंचित कभी निभायें क्यों?
सत्ता पा घपले-घोटाले, करने में शर्मायें क्यों?
न्यायलय से दंडित हों खुद को निर्दोष बतायें क्यों?
जनगण को भारत माता को, करनी से भरमायें क्यों?
ईश्वर! आँखें मूंदें बैठे, 'सलिल' न पिंड छुड़ायें क्यों?
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Sanjiv verma 'Salil'
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