छंद सलिला:
अखण्ड छंद
संजीव
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यह वासव जाति (प्रति चरण ८ मात्रा), २ पद, ४ चरण का छंद है जिसमें अन्य कोई बंधन नहीं है.
लक्षण छंद:
चार चरण से दो पद रचिए,
छंद अखंड न बंधन रखिए
चरण-चरण हो अष्ट मात्रिक
गति लय भाव बिम्ब रस लखिए
उदाहरण:
१. रहें राम सदय, करें कष्ट विलय,
मिले आज अमिय, बहे सलिल-मलय
डरें असुर अजय, रहें मनुज अभय,
बनें छंद मधुर, प्रभु! जय-जय-जय
२. सुनो प्रणेता, बनो विजेता
कहो कहानी नित्य सुहानी
तजो बहाना वचन निभाना
सजन सजा ना! साज बजा ना!
लगा डिठौना, नाचे छौना
चाँद चाँदनी, पूत पावनी
है अखंड जग, आठ दिशा मग
पग-पग चलना, मंज़िल वरना
३. कवि जी युग की करुणा लिखा दो
कविता अरुणा-वरुणा लिख दो
सरदी-गरमी-बरखा लिख दो
बुझना जलना चलना लिख दो
रुकना, झुकना, तनना लिख दो
गिरना-उठना-बढ़ना लिख दो
पग-पग सीढ़ी चढ़ना लिख दो
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
संजीव ‘सलिल’
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