Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश

 

बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश।

साडे स्वामी तुवाडे, बख्तें वे आशीष।1।

 

 

* रोज़ करन्दे हन दुआ, तेडा-मेडा भूल।

अज सुणीज गई हे दुआं, त्रया-पंज दा भूल।2।

 

 

* रब्बा! दुःख कूँ दूर कर, जग दे रचनाकार।

डेवणवाले देवता, वरण जोग करतार।3।

 

 

 कोई करे ते के करे, हे बदलाव असूल।

कायम होसी आस पे, दुनियाँ कर के भूल।4।

 

 

* शरत मुहाणां जित ग्या, नदी-किनारा हार।

लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।5। *

 

 

 

संजीव ‘सलिल’

 

 

 

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