Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाह के चलन तो भ्रमर से हैं

 

चाह के चलन तो भ्रमर से हैं
श्वास औ' आस के समर से हैं


आपको समय की खबर ही नहीं
हमको पल भी हुए पहर से हैं


आपके रूप पे फ़िदा दुनिया
हम तो मन में बसे, नजर से हैं


मौन हैं आप, बोलते हैं नयन
मन्दिरों में बजे गजर से हैं


प्यार में हार हमें जीत हुई
आपके धार में लहर से हैं


भाते नाते नहीं हमें किंचित
प्यार के शत्रु हैं, कहर से हैं


गाँव सा दिल हमारा ले भी लो
क्या हुआ आप गर शहर से हैं.
***

 

 

संजीव ‘सलिल’  

 

 

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