Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चल रहे पर अचल हम हैं

 

 

चल रहे पर अचल हम हैं
गीत भी हैं, गजल हम है

 

आप चाहें कहें मुक्तक
नकल हम हैं, असल हम हैं.

 

हैं सनातन, चिर पुरातन
सत्य कहते नवल हम हैं


कभी हैं बंजर अहल्या
कभी बढ़ती फसल हम हैं

 

मन-मलिनता दूर करती
काव्य सलिला धवल हम हैं

 

जो न सुधरी आज तक वो
आदमी की नसल हम हैं

 

गिर पड़े तो यह न सोचो
उठ न सकते निबल हम हैं

 

ठान लें तो नियति बदलें
धरा के सुत सबल हम हैं

 

कह रही संजीव दुनिया
जानती है सलिल हम हैं.
***

 

 

संजीव ‘सलिल’  

 

 

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