"छंद सलिला:
चंडिका छंद
संजीव
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दो पदी, चार चरणीय, १३ मात्राओं के मात्रिक चंडिका छंद में चरणान्त में गुरु-लघु-गुरु का विधान है.
लक्षण छंद:
१. तेरह मात्री चंडिका, वसु-गति सम जगवन्दिता
गुरु लघु गुरु चरणान्त हो, श्वास-श्वास हो नंदिता
२. वसु-गति आठ व पाँच हो, रगण चरण के अंत में
रखें चंडिका छंद में, ज्ञान रहे ज्यों संत में
उदाहरण:
१. त्रयोदशी! हर आपदा, देती राहत संपदा
श्रम करिये बिन धैर्य खो, नव आशा की फस्ल बो
२. जगवाणी है भारती, विश्व उतारे आरती
ज्ञान-दान जो भी करे, शारद भव से तारती
३. नेह नर्मदा में नहा, राग द्वेष दुःख दें बहा
विनत नमन कर मात को, तम तज वरो उजास को
४. तीन न तेरह में रहे, जो मिथ्या चुगली कहे
मौन भाव सुख-दुःख सहे, कमल पुष्प सम हँस बहे
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संजीव ‘सलिल’
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