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दस मात्रिक दैशिक छंद:

 

छंद सलिला:
दस मात्रिक दैशिक छंद:
संजीव
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दस दिशाओं के आधार पर दस मात्रिक छंदों को दैशिक छंद कहा जाता है. विविध मात्रा बाँट से ८९ प्रकार के दैशिक छंद रचे जा सकते हैं.
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी,
छवि, दीप, दोधक, निधि) प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, सार, सुगति/शुभगति, सुजान, हंसी,
दस मात्रिक दीप छंद

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दस मात्रक दीप छंद के चरणान्त में ३ लघु १ गुरु १ लघु अर्थात एक नगण गुरु-लघु या लघु सगण लघु या २ लघु १ जगण की मात्रा बाँट होती है.

उदाहरण:

१. दीप दस नित बाल, दे कुचल तम-व्याल

स्वप्न नित नव पाल, ले 'सलिल' करताल

हो न तनिक मलाल, विनत रख निज भाल

दे विकल पल टाल, ले पहन कर-माल

२. हो सड़क-पग-धूल, नाव-नद-नभ कूल

साथ रख हर बार, जीत- पर मत हार

अनवरत बढ़ यार, आस कर पतवार

रख सुदृढ़ निज मूल, फहर नभ पर झूल

३. जहाँ खरपतवार, करो जड़ पर वार

खड़ी फसल निहार, लुटा जग पर प्यार

धरा-गगन बहार, सलामत सरकार

हुआ सजन निसार, भुलाकर सब रार

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संजीव ‘सलिल’

 

 

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