Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दीपमालिके!

 

दीपमालिके!
दीप बाल के
बैठे हैं हम
आ भी जाओ

 

 

अब तक जो बीता सो बीता
कलश भरा कम, ज्यादा रीता
जिसने बोया निज श्रम निश-दिन
उसने पाया खट्टा-तीता

 

 

मिलकर श्रम की
करें आरती
साथ हमारे
तुम भी गाओ
राष्ट्र लक्ष्मी का वंदन कर
अर्पित निज सीकर चन्दन कर
इस धरती पर स्वर्ग उतारें
हर मरुथल को नंदन वन कर

 

 

विधि-हरि -हर हे!
नमन तुम्हें शत
सुख-संतोष
तनिक दे जाओ

 

 

अंदर-बाहर असुरवृत्ति जो
मचा रही आतंक मिटा दो
शक्ति-शारदे तम हरने को
रवि-शशि जैसा हमें बना दो

 

 

चित्र गुप्त जो
रहा अभी तक
झलक दिव्य हो
सदय दिखाओ

 

 


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Sanjiv verma 'Salil'

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