Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दोहा

 

बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश।

साडे स्वामी तुवाडे, बख्तें वे आशीष।1।

 

* रोज़ करन्दे हन दुआ, तेडा-मेडा भूल।

अज सुणीज गई हे दुआं, त्रया-पंज दा भूल।2।

 

 * रब्बा! दुःख कूँ दूर कर, जग दे रचनाकार।

डेवणवाले देवता, वरण जोग करतार।3।

 

* कोई करे ते के करे, हे बदलाव असूल।

कायम होसी आस पे, दुनियाँ कर के भूल।4।

 

* शरत मुहाणां जित ग्या, नदी-किनारा हार।

लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।5।

 

* शहनशाह हे रियाया, सपणें हुण साकार।

राजा ते हे बणेंदी, जनता हे हुंकार।6।

 

* गिरगिट वांगण मिन्ट विच, मणुज बदलदा रंग।

डूरंगी हे रवायत, जिवें लोह नूँ जंग।7।

 

* हब्बो जीवण सफल हे, घटगा गर अलगाव।

खुली हवा आजाद हे, ना होवे भटकाव।8।

 

* सिड्धे-सुच्चे मिलण दे, जीवन होस असाण ।

खुदगर्जी डा ख्याल छड़, सुधर वैस इंसाण ।9।

 

 

* हबो यथाईं मिलण हे, निज करमां डा फल्ल।

रब्बा मैंकू मुकुति दे, आतम पैसी कल्ल।10।

 

 

 

* Sanjiv verma 'Salil'

 

 

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