एक यमकीय दोहा:
संजीव
*
फेस न करते फेस को, छिपते फिरते नित्य
बुक न करें बुक फोकटिया, पाठक 'सलिल' अनित्य
Powered by Froala Editor
एक यमकीय दोहा:
संजीव
*
फेस न करते फेस को, छिपते फिरते नित्य
बुक न करें बुक फोकटिया, पाठक 'सलिल' अनित्य
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY