Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हमको बहुत है फख्र कि मजदूर हैं

 

हमको बहुत है फख्र कि मजदूर हैं
क्या हुआ जो हम तनिक मजबूर हैं.


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कह रहे हमसे फफोले हाथ के
कोशिशों की माँग का सिन्दूर हैं


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आबलों को शूल से शिकवा नहीं
हौसले अपने बहुत मगरूर हैं.


*
कलश महलों के न हमको चाहिए
जमीनी सच्चाई से भरपूर हैं.


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स्वेद गंगा में नहाते रोज ही
देव सुरसरि-'सलिल' नामंज़ूर है.

***

 

संजीव ‘सलिल’

 

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