Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिंदगी की इमारत

 

 

जिंदगी की इमारत में, नीव हो विश्वास की
दीवालें आचार की हों, छतें हों नव आस की

 

बीम संयम की सुदृढ़, मजबूत कॉलम नियम के
करें प्रबलीकरण रिश्ते, खिड़कियाँ हों हास की

 

कर तराई प्रेम से नित, छपाई के नीति से
ध्यान धरना दरारें बिलकुल न हों संत्रास की

 

रेट आदत, गिट्टियाँ शिक्षा, कला सीमेंट हो
फर्श श्रम का, मोगरे सी गंध हो वातास की

 

उजाला शुभकामना का, द्वार हो सद्भाव का
हौसला विद्युतीकरण हो, रौशनी सुमिठास की

 

वरांडे ताज़ी हवा, दालान स्वर्णिम धूप से
पाकशाला तृप्ति, पूजास्थली हो सन्यास की

 

फेंसिंग व्यायाम, लिंटल मित्रता के हों 'सलिल'
बालकनियाँ पड़ोसी, अपनत्व के अहसास की

 


*
Sanjiv verma 'Salil'

 

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