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लावणी

 
संजीव वर्मा 'सलिल'

लावणी

 *

 छंद विधान: यति १६-१४, समपदांती द्विपदिक मात्रिक छंद, पदांत नियम मुक्त।

 पुस्तक मेले में पुस्तक पर, पाठक-क्रेता गायब हैं।
 थानेदार प्रकाशक कड़ियल, विक्रेतागण नायब हैं।।

जहाँ भीड़ है वहाँ विमोचन, फोटो ताली माला है।
 इंची भर मुस्कान अधर पर, भाषण घंटों वाला है।।

 इधर-उधर ताके श्रोता, मीठा-नमकीन कहाँ कितना?
 जितना मिलना माल मुफ्त का, उतना ही हमको सुनना।।

 फोटो-सेल्फी सुंदरियों के, साथ खिंचा लो चिपक-चिपक।
 गुस्सा हो तो सॉरी कह दो, खोज अन्य को बिना हिचक।।

 मुफ्त किताबें लो झोला भर, मगर खरीदो एक नहीं।
 जो पढ़ने को कहे समझ लो, कतई इरादे नेक नहीं।।

 हुई देश में व्याप्त आजकल, लिख-छपने की बीमारी।
 बने मियाँ मिट्ठू आपन मुँह, कविगण करते झखमारी।।

 खुद अभिनंदन पत्र लिखा लो, ले मोमेंटो श्रीफल शाल।
 स्वल्पाहार हरिद्रा रोली, भूल न जाना मीठा थाल।। 

 करतल ध्वनि कर चित्र खींच ले, छपवा दे अख़बारों में।
 वह फोटोग्राफर खरीद लो, सज सोलह सिंगारों में।।

 जिम्मेदारी झोंक भाड़ में, भूलो घर की चिंता फ़िक्र।
 धन्य हुए दो ताली पाकर, तरे खबर में पाकर ज़िक्र।।

 ***
 ११.१.२०१९

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