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मिलो गले हमसे तुम मिलो ग़ज़ल गाओ
चलो चलें हम दोनों चलो चलें आओ
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यही कहीं लिखना है हमें कथा न्यारी
कली खिली गुल महके सुगंध फैलाओ
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कहो-कहो कुछ दोहे चलो कहो दोहे
यहीं कहीं बिन बोले हमें निकट पाओ
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छिपाछिपी कब तक हो?, लुकाछिपी छोड़ो
सुनो बुला मुझ को लो, न हो तुम्हीं आओ
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भुला गिले-शिकवे दो, सुनो सपन देखो
गले मिलो हँस के प्रिय, उन्हें 'सलिल' भाओ
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क्या यह 'बहरे मुसम्मन मुरक़्क़ब मक्बूज़ मख्बून महज़ूफ़ो मक्तुअ' में है?
संजीव ‘सलिल’
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