छंद सलिला:
अग्र / सर्वगामी छंद
संजीव
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(छंद विधान : ७ तगण + २ गुरु, द्विपदिक मात्रिक छंद)
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ओ शारदे माँ!, हमें तार दे माँ!, दिखा बिम्ब सारे, सिखा छंद प्यारे।
ओ भारती माँ!, करें आरती माँ!, अलंकार धारे, लिखा गीत न्यारे।।
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शब्दाक्षरों में, लिखा माँ भवानी!, युगों की कहानी, न देखी न जानी।
ओ मातु अंबे!, न कोरी कहानी, धरा-ज़िंदगानी, बना दे सुहानी।।
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भावानुभावों, रसों भावनाओं, हसीं कल्पनाओं, सदा मुस्कुराओ।
खोओ न- पाओ, गुमा पा बचाओ, लुटाओ-भुलाओ, हँसो गीत गाओ।।
फूलों न भूलो, खिलो और झूमो, बसंती फ़िज़ाओं, न पर्दा गिराओ।
घाटों न नावों, न बाज़ार भावों,
उतारों-चढ़ावों,
सदा संग पाओ।।
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संजीव ‘सलिल’
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