दोहा सलिला:
पौधरोपण कीजिए
संजीव
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पौधारोपण कीजिए, शुद्ध हो सके वायु
जीवन जियें निरोग सब, मानव हो दीर्घायु
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एक-एक ग्यारह हुए, विहँसे बारह मास
तेरह पग चलकर हरें, 'सलिल' सभी संत्रास
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मैं-तुम मिल जब हम हुए, मंज़िल मिली समीप
हों अनेक जब एक तो, तम हरते बन दीप
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चेतन जब चैतन्य हो, तब होता संजीव
अंतर्मन शतदल सदृश, खिल होता राजीव
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विजय-पराजय से रहे, जब अंतर्मन दूर
प्रभु-कीर्तन पल-पल करे, श्वासों का संतूर
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जब तक रीतेगा नहीं, आकांक्षा का कोष
जब तक पायेगा नहीं, अंतर्मन संतोष
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नित लाती है रवि-किरण, दिनकर का पैगाम
लाली आती उषा के, गालों पर सुन नाम
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आशीषों की रोटरी, कोशिश की हो राह
वाह परिश्रम की करें, मन में पले न डाह
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अंकुर पल्लव पौध ही, बढ़ बनते उद्यान
संरक्षण पा ओषजन, से दें जीवन दान
संजीव ‘सलिल’
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