Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सरस्वती वंदना

 

 

संजीव
*
हे हंसवाहिनी! ज्ञान दायिनी!!
अम्ब विमल मति दे …
*
नंदन कानन हो यह धरती
पाप-ताप जीवन का हरती
हरियाली विकसे …
*
बहे नीर अमृत सा पावन
मलयज शीतल, शुद्ध सुहावन
अरुण निरख विहँसे …
*
कंकर से शंकर गढ़ पायें
हिमगिरि के ऊपर चढ़ पायें
वह बल-विक्रम दे …
*

हरा-भरा हो सावन-फागुन
रान्य ललित त्रैलोक्य लुभावन
सुख-समृद्धि सरसे …
*
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें
सदा समन्वय मंत्र उचारें
'सलिल' विमल प्रवहे …
*

 

 

 

 

Sanjiv verma 'Salil'

 

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ