संजीव
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हे हंसवाहिनी! ज्ञान दायिनी!!
अम्ब विमल मति दे …
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नंदन कानन हो यह धरती
पाप-ताप जीवन का हरती
हरियाली विकसे …
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बहे नीर अमृत सा पावन
मलयज शीतल, शुद्ध सुहावन
अरुण निरख विहँसे …
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कंकर से शंकर गढ़ पायें
हिमगिरि के ऊपर चढ़ पायें
वह बल-विक्रम दे …
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हरा-भरा हो सावन-फागुन
रान्य ललित त्रैलोक्य लुभावन
सुख-समृद्धि सरसे …
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नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें
सदा समन्वय मंत्र उचारें
'सलिल' विमल प्रवहे …
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Sanjiv verma 'Salil'
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