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Dr. Srimati Tara Singh
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शिव छंद

 

छंद सलिला:
शिव छंद
संजीव
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
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एकादश रुद्रों के आधार पर ग्यारह मात्राओं के छन्दों को 'रूद्र' परिवार का छंद कहा गया है. शिव छंद भी रूद्र परिवार का छंद है जिसमें ११ मात्राएँ होती हैं. तीसरी, छठंवीं तथा नवमी मात्रा लघु होना आवश्यक है. शिव छंद की मात्रा बाँट ३-३-३-३-२ होती है.
छोटे-छोटे चरण तथा दो चरणों की समान तुक शिव छंद को गति तथा लालित्य से समृद्ध करती है. शिखरिणी की सलिल धर की तरंगों के सतत प्रवाह और नरंतर आघात की सी प्रतीति कराना शिव छंद का वैशिष्ट्य है.
शिव छंद में अनिवार्य तीसरी, छठंवीं तथा नवमी लघु मात्रा के पहले या बाद में २-२ मात्राएँ होती हैं. ये एक गुरु या दो लघु हो सकती हैं. नवमी मात्रा के साथ चरणान्त में दो लघु जुड़ने पर नगण, एक गुरु जुड़ने पर आठवीं मात्र लघु होने पर सगण तथा गुरु होने पर रगण होता है.
सामान्यतः दो पंक्तियों के शिव छंद की हर एक पंक्ति में २ चरण होते हैं तथा दो पंक्तियों में चरण साम्यता आवश्यक नहीं होती। अतः छंद के चार चरणों में लघु, गुरु, लघु-गुरु या गुरु-लघु के आधार पर ४ उपभेद हो सकते हैं.
उदाहरण:

१. चरणान्त लघु:
हम कहीं रहें सनम, हो कभी न आँख नम
दूरियाँ न कर सकें, दूर- हों समीप हम
२. चरणान्त गुरु:
आप साथ हों सदा, मोहती रहे अदा
एक मैं नहीं रहूँ, भाग्य भी रहे फ़िदा
३. चरणान्त लघु-गुरु:
शिव-शिवा रहें सदय, जग तभी रहे अभय
पूत भक्ति भावना, पूर्ण शक्ति कामना
४. चरणान्त गुरु लघु:
हाथ-हाथ में लिये, बाँध मुष्टि लब सिये
उन्नत सर-माथ रख, चाह-राह निज परख

 

 


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Sanjiv verma 'Salil'

 

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