Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुमको देखा

 

तुमको देखा

तो मरुथल मन

हरा हो गया।

*

चंचल चितवन मृगया करती

मीठी वाणी थकन मिटाती।

रूप माधुरी मन ललचाकर -

संतों से वैराग छुड़ाती।

खोटा सिक्का

दरस-परस पा

खरा हो गया।

तुमको देखा

तो मरुथल मन

हरा हो गया।

*

उषा गाल पर, माथे सूरज

अधर कमल-दल, रद मणि-मुक्ता।

चिबुक चंदनी, व्याल केश-लट

शारद-रमा-उमा संयुक्ता।

ध्यान किया तो

रीता मन-घट

भरा हो गया।

तुमको देखा

तो मरुथल मन

हरा हो गया।

*

सदा सुहागन, तुलसी चौरा

बिना तुम्हारे आँगन सूना।

तुम जितना हो मुझे सुमिरतीं

तुम्हें सुमिरता है मन दूना।

साथ तुम्हारे गगन

हुआ मन, दूर हुईं तो

धरा हो गया।

तुमको देखा

तो मरुथल मन

हरा हो गया।

*

 

संजीव ‘सलिल’  

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