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Dr. Srimati Tara Singh
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वैलेंटाइन

 

 

वैलेंटाइन

 

 

संजीव

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उषा न संध्या-वंदना, करें खाप-चौपाल

मौसम का विक्षेप ही, बजा रहा करताल

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लेन-देन ही प्रेम का मानक मानें आप

किसको कितना प्रेम है?, रहे गिफ्ट से नाप

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बेलन टाइम आगया, हेलमेट धर शीश

घर में घुसिए मित्रवर, रहें सहायक ईश

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पर्व स्वदेशी बिसरकर, मना विदेशी पर्व

नकद संस्कृति त्याग दी, है उधार पर गर्व

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उषा गुलाबी गाल पर, लेकर आई गुलाब

प्रेमी सूरज कह रहा, प्रोमिस कर तत्काल

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धूप गिफ्ट दे धरा को, दिनकर करे प्रपोज

देख रहा नभ मन रहा, वैलेंटाइन रोज

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रवि-शशि से उपहार ले, संध्या दोनों हाथ

मिले गगन से चाहती, बादल का भी साथ

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चंदा रजनी-चाँदनी, को भेजे पैगाम

मैंने दिल कर दिया है, दिलवर तेरे नाम

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पुरवैया-पछुआ कहें, चखो प्रेम का डोज

मौसम करवट बदलता, जब-जब करे प्रपोज

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संजीव ‘सलिल’  

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