ये पूजता वो लगाता है ठोकर
पत्थर कहे आदमी है या जोकर?
वही काट पाते फसल खेत से जो
गये थे जमीं में कभी आप बोकर
हकीकत है ये आप मानें, न मानें
अधूरे रहेंगे मुझे ख्वाब खोकर
कोशिश हूँ मैं हाथ मेरा न छोड़ें
चलें मंजिलों तक मुझे मौन ढोकर
मेहनत ही सबसे बड़ी है नियामत
कहता है इंसान रिक्शे में सोकर
केवल कमाया न किंचित लुटाया
निश्चित वही जाएगा आप रोकर
हूँ संजीव शब्दों से सच्ची सखावत
करी, पूर्णता पा मगर शून्य होकर
***
संजीव ‘सलिल’
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