वो बहुत देर तक रोने के बाद
सूजी आंखों से उठी
9 बजने को थे , बच्चे भूखे ही न सो जाएं
चिंता बड़ी थी, बच्चों के लिए कुछ बनाना ही था
उसे गाल पर पड़े थप्पड़ों से ज्यादा
दिल पे पड़े थपेड़ों का ज्यादा दर्द था
आखिर उसने शराब ज्यादा न पीने का ही तो कहा था
भारी मन से खाना बनाया उसने
बच्चों को हाथों से खिलाकर सुला आई थी
एक थाली रख दी थी, उसके लिए
जिसने मारा था उसे कुछ देर पहले
चिल्लाई थी उस पर, भूख हो तो खा लेना
उसका जवाब सुने बिना ही लेट गई वो
उसका नशा उतरा था कुछ देर बाद
तो किया अनुनय विनय
मांगी माफियां, किये वादे कभी न पीने के
और आखिर उसे करना पड़ा समर्पण
स्त्री थी सर्वस्व निछावर करना है उसे
बचपन से यही सुनती आई थी
वो उसके वक्ष में समाकर सोया था
और वो सहला रही थी उसके बालों को
उसे अपने अक्स में भींचे हुए
सच ही कहा है नारी तुम
करुणा, दया और प्रेम की देवी हो
ऐ नारी नमन है तुझे
संजय नायक"शिल्प"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY