Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नियति

 

शाम के पांच बज रहे थे| सुबह से ही बस सेवा बंद थी,जिसकी वजह से लोकल ट्रेनों में भारी भीड़-भाड़ थी| अभी-अभी ऑफिस से घर पहुँचा ही था कि बॉस का फोन आ गया कि एक अर्जेंट मीटिंग बुलाई गयी है| अभी आ जाओ| एक तरफ़ बस हड़ताल दूसरी ओर ट्रेनों में जबरदस्त भीड़,यह सोच कर दीमाग ख़राब हो रहा था| बड़ी मुश्किल से तो अभी घर पहुँचा था कि फिर से ऑफिस|
जल्दी से फाइलें बैग में रखी| यह देखकर मेरी पत्नी बड़बड़ाने लगी|
“क्या जी? अभी आये और फिर चल दिये”
“क्या करू, बॉस का फ़ोन आ गया| चिल बेबी दो घंटे में वापस आ जाऊगा|”
“दो घंटे में! अभी तो कह रहे थे कि ऑफिस में मीटिंग है| दो घंटे तो आने-जाने में लग जाएगे”
“हाँ मैडम जी पाँच घंटे| अब ठीक है” मैं झुझलाकर बोला|
“एक तो प्राइवेट नौकरी, दूसरा जीतोड़ काम भी लेते हैं| छोड़ क्यों नहीँ देते ऐसी नौकरी|”
पत्नी तुनक कर बोली|
“मैडम जी नौकरी तो छोड़ दू, पर दूसरी मिलनी भी चाहिए|” यह कहकर मैंने अपना बैग उठाया और ऑफिस के लिए निकल पड़ा | मेरी पत्नी की नाराज़गी साफ़ जाहिर हो रही थी| क्योकि आज सुबह ही उससे यह वादा करके निकला था कि शाम को मल्टीप्लेक्स में नई मूवी देखने चलेगे और फिर रेस्तरां में डिनर करेगें |
वह मेरे बॉस पर बड़बड़ाती हुई मेरे पीछे दरवाजे तक आई थी और मेरे निकलने के बाद जोर से दरवाजा बंद कर लिया था|
स्टेशन घर से दस कदम की दूरी पर ही था| जैसे ही स्टेशन पहुँचा तो देखा कि रेलवे पास घर में भूल आया हूँ | फिर क्या रेलवे टिकट काउंटर में लगी लम्बी लम्बी कतारों को देखकर माथा पकड़ लिया| मरता क्या ना करता, बीस रुपये का नोट निकाला और लाइन में खड़ा हो गया| जबतक टिकट खिड़की पर पहुँचता कि फ़ास्ट लोकल निकल गयी| दूसरी फ़ास्ट ट्रेन आधे घंटे बाद आने वाली थी| टिकट लेने के बाद प्लेटफ़ॉर्म न. चार में पहुँचा और ट्रेन का इंतजार करने लगा| पांच मिनट बाद एक स्लो लोकल आ गई|
ज्यो ही ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर रुकी तो इतनी भीड़ उमड़ पड़ी कि मानो समुद्र तट पर सैलाब आ गया हो और अगले पल ही सारा पानी फिर से समंदर में समां गया हो|
ट्रेन में पैर रखने की की भी जगह नहीं थी| एक हाथ में बैग थामा और दूसरे हाथ से लटकते हुए हैंडल को पकड़ लिया|
सुबह से थककर चूर हो गया था| बॉस को अर्जेंट मीटिंग की क्या पड़ी थी| कल भी मीटिंग कर सकते थे| मन कर रहा था कि जाकर सीधे इस्तीफा दे दू|
स्लो ट्रेन होने के कारण हर स्टेशन पर रुकती जिसके कारण मेरी बेचैनी बढ रही थी| एक मन हो रहा था कि दादर में उतर जाऊ और घर वापस लौट जाऊ| जैसे ही ट्रेन स्टेशनो में रुकती, यात्रियों का एक रेला बाहर निकलता तो दूसरा जत्था अन्दर आ जाता| ये बॉस को भी क्या पड़ी थी| पिछले साल भी ऐसा ही किया था, और जब सभी कर्मचारी पहुँच गये थे तो अपने घर में इमरजेंसी बता कर मीटिंग रद्द कर दी थी|
आज निश्चय कर लिया था कि अगर मीटिंग फिर से कैंसिल हुई तो तुरंत इस्तीफ़ा दे दूँगा| दूसरी नौकरी के लिए प्रयास करूँगा| नियति में जो होगा वाही मिलेगा| मैं मन ही मन बॉस पर बरस रहा था उससे ज्यादा शायद मेरी पत्नी कोंस रही होगी क्योंकि आज ही हमारी शादी की पहली वर्षगाँठ थी|
इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था कि वीटी स्टेशन आ गया| मैं भारी मन से बाहर निकला| ऑफिस यहाँ से दस फर्लांग की दूरी पर था| वहाँ पहुँचा तो मीटिंग शुरू हो चुकी थी| सभी कर्मचारी पहुँच चुके थे|
आज हमारी शादी की पहली वर्षगाँठ थी और पत्नी से जल्दी घर आने का वादा किया था और घर पहुँच भी गया था पर बॉस की मीटिंग के कारण शादी की वर्षगाँठ मनाने का सपना चकनाचूर हो गया था| मन ही मन अपने आप को कोंसा और मीटिंग हाल में प्रवेश किया शायद नियति भी यही थी|
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लेखक-
सनोज कुमार

 

 

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