कितनी दें तुम्हें उपमाएं!
कैसे करें तुझे अलंकृत?
अनगिनत उपमाएं हैं,
मधुर संगीत की ध्वनियाँ
घंटो से निकलती प्रतिध्वनियाँ।
शंखों का शंखनाद
सहज भाव से बिना
पूर्वाग्रह, दुराग्रह के,
ख़ुद-व-खुद आँखों
से बातें करते।
बमुश्किल चार कदम
की दुरी,और जिम्मेदारी
ने उनके बढ़ते कदम रोक दिया।
सौंदर्य बोध से लिहाज़ा,
उनके अदब से हम भी
वाकिफ़ हो गए।
संशय दिल में खूब हुआ
सच्चाई की राह
कठिन तो है मगर
दिल का सुकूँ
तो अनमोल है।
संतोष भावरकर "नीर"
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