!! हे रघुनंदन !!
धर्म ठेकेदारों का क्या होगा?
भक्त जनों का दरबार सजेगा
मेरे ललाट के हो चन्दन
जय हो जय मेरे रघुनंद।
जयचंदो के चंदा चक्कर से
दशकों दशक तिरपाल में बीते
ठसक न्याय की करूँ अभिनंदन
जय हो जय मेरे रघुनंदन।
पीढ़ी दर पीढ़ी बीती आशा में
असुरों की कुण्ठित अभिलाषा में
उठो ! करो अब पाप का मरदन
जय हो जय मेरे रघुनंदन।
खत्म हुआ सदियों का वनवास
मिलेगा सुघर भव्य निवास
हाथ जोड़ करते हम वन्दन
जय हो जय मेरे रघुनंदन।
शर्मसार हुए हैं हम
अपने घर के विभिषणों से
करो क्षमा! विराजो, संग अंजनीनदंन
जय हो जय मेरे रघुनंदन।
रचनाकार:-
संतोष सिंह क्षात्र
सम्पर्क :- 9662220091
मेल आईडी:- santoshsingh006@gmail.com
From: संतोष सिंह क्षात्र
Sent: Thursday, November 14, 2019 12:07 AM
To: swargvibha@gmail.com <swargvibha@gmail.com>
Subject: कविता " हे रघुनंदन " प्रकाशनार्थ
Sent: Thursday, November 14, 2019 12:07 AM
To: swargvibha@gmail.com <swargvibha@gmail.com>
Subject: कविता " हे रघुनंदन " प्रकाशनार्थ
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