धूम धड़क-तड़क-भड़क
चमक-दमक चपला संग, संदेशा पहुँचा रहा है!
फुनगी, पराग, भ्रमर, बागानों से मिलने
झुमता सावन आ रहा है!!
पकड़ राह रेतीली, चटके खेत से
उलीच बादल सागर पेट से, ला रहा है!
जी-वन को तर करने, फिर से
झुमता सावन आ रहा है!!
रिमझिम वर्षा मदभरेगी, अंग-अंग विरानों में
पछूआ पग-पग समझा रहा है!
धूसरित धरा, झूलसी कोपलें मुस्कायेगीं
झुमता सावन आ रहा है!!
बिनप्रियतम व्याकुल-कोकिल पपिहा को
भ्रमरगीत सुना रहा है!
सींचते जंगल के ठुठ
झुमता सावन आ रहा है!!
नन्ही जल बूंदों से बादरा
वसुंधरा को सजा रहा है!
कृषक घूम घूम बता रहा है
झुमता सावन आ रहा है!!
भ्रमर गुनगुना कर, प्रेम
प्रियतमा को रिझा रहा है!
संदेशा पा लिपटी बेल,टहनी खिलखिलायी
झुमता सावन आ रहा है!!
बदली संग पुरवाई है व्याकुल
झूला नभ में कौन बना रहा है!
लिपट प्रेम में हैं, बैठें युगल
झुमता सावन आ रहा है!!
ओढ़ चांदनी पर उदास नववधू
क्या साथ सजना को ला रहा है!
ताकती भर दिन राह पिया की
झुमता सावन आ रहा है!!
दिनकर भी सहयोगी बन
सावन को महावर लगा रहा है!
खग-विहग-जन को है स्वागत की आतुरता
झुमता सावन आ रहा है!!
मानवता के लिए फिर से होकर राम
सागर को मना रहा है!
कण-कण को अभिसिंचित करने
झुमता सावन आ रहा है!!
#क्षात्र_लेखनी @Santoshkshatra
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