Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कब-तक भागोगे तुम

 

कब-तक चलेगा ऐसा,
पसारे हाथ कब-तक गिड़गिड़ाओगे तुम
क्या स्वयं को मुर्दा बना दिया है
कहां-कहां शरण पाओगे
कब-तक भीख सहायता की मांगोगे तुम।
कब-तक भागोगे तुम।।

मरना निश्चित है एक दिन,
जरा विवेकानंद को पढ़ लेते,
इस मरी काया के अंदर,
थोड़ा शौर्य तो गढ़ लेते,
कब-तक भीख सहायता की मांगोगे तुम।
कब-तक भागोगे तुम।।

कायर बन कहां-कहां भटकोगे
राह चलते कब-तक अटकोगे,
याद लक्ष्मीबाई का कर लेते
मानस पटल पर शिवाजी को रख लेते,
कब-तक भीख सहायता की मांगोगे तुम।
कब-तक भागोगे तुम।।

ऐतिहासिक गद्दारों के भय से
क्या महाराणा प्रताप को भुलाओगे तुम
कब भरतवंश की काया में आओगे तुम
इसराइल के कदमों को पहचानोगे तुम
कब-तक भीख सहायता की मांगोगे तुम।
कब-तक भागोगे तुम।।

दिवास्वप्न से बाहर झांको
अतीत के पन्नों पर स्वयं को आंको,
नंगी आधुनिकता के किचड़ पोछों,
झलकारी बाई - पद्मावती सा सोचो
कब-तक भीख सहायता की मांगोगे तुम।
कब-तक भागोगे तुम।।

दूसरों के आसरे कब-तक सम्मान खोओगे तुम
क्या भाग्य भरोसे हर कदम रोओगे तुम
धर्मनिरपेक्ष के दोहरेपन को बाहर कब लाओगे तुम
गुरू गोविन्द सा सम्बल कब प्रकटाओगे तुम
कब-तक भीख सहायता की मांगोगे तुम।
कब-तक भागोगे तुम।।


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