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“कण-कण से प्रस्फुटित सावन होगया”

 

“कण-कण से प्रस्फुटित सावन होगया”


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संतोष सिंह Santosh Singh 

AttachmentsJul 20, 2022, 10:58 AM (1 day ago)




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बिखरी बूंदों की यादों से
अब प्रेम सघन होगया।
मिली तरनी सागर में
तो वह धन्य होगया।।

हुलसी कोंपले हजारों
तितलियों का हर्षित मन होगया।
मिलन निहार,हिमपति का
अंग-अंग मगन होगया।

प्रियसी की सुन, छन-छन पायलिया
संध्या का रोमांचित तन होगया।।
घूमर-घूमर बदरा हरषे
भ्रमर को बसंत का, भ्रम होगया।।

है उदास-धूसरित-दुःखी धरा
ताक, द्रवित गगन होगया।
क्रोधित हो जब चीखी चपला
सचेत-सहमा भुवन होगया।।

व्याकुल कृषक, थे प्यासे खेत
किसानी का खूब जतन होगया।
चहूंओर बरसी खूशियां
अन्न-अन्न से भरा, आंगन होगया।।

कलियों ने बिखेरी, राहों में सुगंध
मंत्रमुग्ध थका पवन होगया।
थी पसारे अलक, अब छककर बरसी बदरिया
कण-कण से प्रस्फुटित, सावन होगया।।
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#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra





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