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खिचड़ी की महक

 

खिचड़ी की महक


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संतोष  सिंह Santosh Singh 

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to me 


गाय गोबर से लीपे-पुते
द्वार-आंगन-बैठक-दालान।
कुँच गली चहके महके,
मधुमास आगमन का है, सर्वत्र भान।।


चीर धुंध दिनकर आये,
पुस की नरम धूप गुदगुदाये।
गेहूं के गांव घूमरि-घूमरि झूमे
ठूंठ टहनी पर पल्लव भाये।।


पसरेगा निश्चित प्रेम-प्रकाश
दही-चूड़ा और गुड़ की मिठास।
नवल अन्न-मन- करके जतन
द्वार पर आज होगा पावन वास।।


ठिठुर-ठिठुर बीती हैं रातें
शरद गमन की मन में आस।
पछूआ मगन झुरक रहा
प्रभू जयकारे से गूंजे आकाश।।


खुशी से उछले बच्चे डोर उलझाये
पुरवाई संग पतंग अठखेलियां मचाये।
नानी-दादी पूजन के स्थान सजाये,
घर-घर खिचड़ी उल्लास घूलाये।।


#क्षात्र_लेखनी @SantoshKshatra





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