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कोरोना का आतंक

 

कोरोना का आतंक




संतोष सिंह क्षात्र 

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to me 


षड्यंत्र के पेट से, फैली महामारी। 

नाम है कोरोना, चीन से रिश्तेदारी।। 


शिकारी था चालाक, फँसायी दूनिया सारी। 

मिट गयी दूरियाँ, चल पड़ी उधारी।। 


ईर्ष्या की भेंट चढ़ी, दूनिया की इकोनॉमी। 

मस्त वायरस का पापा , रो-रहे नामी- गामी।। 


घूम रहे बहसी, जाहिल सपोलों के वेश में। 

अनदेखा कर नियम-कानून, भरत के देश में।। 


दूबक गये हैं धर्मनिरपेक्षी, संविधान के रखवाले। 

दलित,पिछड़ों के हिमायती,आरक्षण की रक्षावाले।। 


करोड़ों रख छूपे बंगले में, गरीब, मजदूर की राजनीति वाले।

अदृश्य हुए समाजसेवी, सड़कों पर चिल्लाने वाले।। 

 

बढ़ रहे हैं दिन दूगने-रात चोगुनी, अंतराष्ट्रीय भिखमंगे। 

हर लाभ में होते हैं आगे, पर भड़का रहे है दंगे।। 


जिन्दगी के बहाने बदल रहे रंग-ढंग। 

फैलता संक्रमण देख वैज्ञानिक हैं दंग।। 


हस्त मिलन बन्द, अब तो प्रणाम का दौर। 

पश्चिमी नकलची स्वच्छता पर किये हैं गौर।। 


बार - बार सीख एक, अब तो दूर करो क्लेश को। 

टूट गई जो आस फिर कैसे बचाओगे देश को।। 


लाखों आहूत हुए जहां, स्वाभिमान की वेदी पर। 

आंचल की लाज रखो, टूट पड़ो राष्ट्र भेदी पर।। 




#क्षात्र_लेखनी_  @SantoshKshatra




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