Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मगन अयोध्या आज

 

पुरूषोत्तम लला पधारे, झूमे पूरा समाज।

बिनदरश थे मुरझाए नयन ,मगन अयोध्या आज।।


चौदह वर्ष की बिछुड़न, कण-कण थे उदास।

खुशियों की लड़ी पसरी, फुलझड़ियों की बरसात।।


दसशीश हरा प्रभू ने, किया भक्तो का उद्धार।

पग-पग दीया झलमल, मिट रहा अंधियार।।


कुंच गली लागे दूल्हन, घर-आंगन में ठाट।

जगमग घी के दीपक, प्रफुल्लित सरयू के घाट।।


सोंधी महक घुल-मिल, बहे पवन झकझोर।

भागे-भागे आगये, जैसे तारे धरती ओर।।


छाजन ओढ़े उजियाली ,भयी स्वर्ण शालिका छोर।

कोने-कोने में टिमटिमाते दीप, झूमे पोर-पोर।।


प्रभू चरण वंदन की, मची है अतुलित होड़।

विकट अंधेरा चीर, नन्हें-मुन्हें करते आज अजोर।।


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