पुरूषोत्तम लला पधारे, झूमे पूरा समाज।
बिनदरश थे मुरझाए नयन ,मगन अयोध्या आज।।
चौदह वर्ष की बिछुड़न, कण-कण थे उदास।
खुशियों की लड़ी पसरी, फुलझड़ियों की बरसात।।
दसशीश हरा प्रभू ने, किया भक्तो का उद्धार।
पग-पग दीया झलमल, मिट रहा अंधियार।।
कुंच गली लागे दूल्हन, घर-आंगन में ठाट।
जगमग घी के दीपक, प्रफुल्लित सरयू के घाट।।
सोंधी महक घुल-मिल, बहे पवन झकझोर।
भागे-भागे आगये, जैसे तारे धरती ओर।।
छाजन ओढ़े उजियाली ,भयी स्वर्ण शालिका छोर।
कोने-कोने में टिमटिमाते दीप, झूमे पोर-पोर।।
प्रभू चरण वंदन की, मची है अतुलित होड़।
विकट अंधेरा चीर, नन्हें-मुन्हें करते आज अजोर।।
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