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मकरसंक्रांति

 

कविता " मकरसंक्रांति " प्रकाशनार्थ


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संतोष सिंह क्षात्र 

4:38 AM (7 hours ago)




to me 








          ।। मकरसंक्रांति ।।


बिखरी जल बूदें, पसरी हरियाली।
मद्धम शरद चांदनी की उजयाली।। 

अग्नि की लौ लागे प्यारी प्यारी।
बुढ़े, बच्चे हैं सभी आभारी।। 

जीवन के रक्षक है, घट  घट वासी ।
तज धनु प्रवेश करेंगे मकर राशि।। 

पल पल अग्रसर उत्तरायण ओर सुरेश।
रात्रि संकुचित, दिवस बढ़े हर निमेष।। 

गुड़ तिल की सोंधी महक, पतंग की खुमारी।
शरद अवसान पर,झुमी धरती सारी।। 

वस्त्र, अन्न, दिन, राशि नवीन।
हुए मकर में दिवाकर आसीन।। 

मन मानस उत्सुक, बिखरी ऐसी कांति।
चहुँओर फैली खुशियाँ,मनाये पर्व संक्रांति।। 

                                     रचना- संतोष सिंह क्षात्र

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