Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मर्यादा और रक्षाबंधन

 

कविता:: मर्यादा और रक्षाबंधन


Inbox
x




संतोष  सिंह Santosh Singh 

Attachments8:15 AM (22 minutes ago)




to me, Anubhuti 


भाई-बहन का पावन दिन

उपहार में सिमट गया क्यों, 

प्रीत, सम्मान का ये पर्व

समाज भूल गया, क्यों !! 


आंगन की मधुर किलकारी

चीख रही हैं अब क्यों, 

कदम-कदम पर मानवता

निर्लज्ज दिख रही है क्यों!! 


भाई बहन का प्रेम

ओझल हो रहा है क्यों, 

आभासी संसार में आखिरी

संस्कार हमारा मिट रहा है क्यों!! 


आदर्श यदि तुम्हारे नर्तक, नेता और वेश्या

ढूँढ रहे हो चरित्र, सम्मान अब क्यों, 

पढ़-लिख बन बैठे हो मुर्ख

फिर कर्म से अपने पश्चता रहे हो क्यों!! 


मुड़ पीछे पूर्वजों की विरासत अपनाओ

पश्चिम के आगोस में घुट रहे हो क्यों, 

तीज, पर्व की सच्चाई जानो, 

बहकावे में कालिदास बन बैठे हो क्यों!! 


बुजुर्गों की दी सीख नागवार गुजरती थी

चौराहे पर हो पड़े पुराने दिन याद आ रहे हैं क्यों, 

बिखर रहा घर-परिवार-समाज

तुम्हारी आधुनिकता दुबक गई है क्यों!! 


रक्षा,त्याग, करुणा की परिभाषा

हर निमेष सिमट रही है क्यों, 

पावन, पवित्र पर्वों पर न जाने

अब सन्नाटे सी मायूसी छा रही है क्यों!! 


आयातित जिस संस्कृति पर इतराते थे

परिणाम से उसके माथा पिट रहे हो क्यों, 

लूट रही घर-पड़ोस की मर्यादा

अब स्वयं से गिर गये हो क्यों!! 


बहन-बेटी हो तुम्हारी या परायी

अपनो जैसा सम्मान देते हो न क्यों, 

चरित्र में घोलों पावन चंदन

घुल-मिल मनाओ पर्व रक्षाबंधन!! 


#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra





 2 Attachments

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ