पथ, पलायन और प्रवासी
भूखा है, प्यासा है, जरा प्यास चख लो कोई
जगा है निरन्तर जरा संग जग लो कोई
बन सारथी पथ-रण का कन्हैया बन लो कोई
तपती दुपहरी चलता चला जरा साथ तप लो कोई
आंखों में साफ़ लिखा है पढ़ लो कोई
कांटों से कष्ट ही मिला सह लो कोई
अंधियारा डरा रहा है संग चल लो कोई
भारत निर्माता है बेसहारा हाथ पकड़ लो कोई
महल में बसने वालो सहारा बन लो कोई
समाज सेवी बन बैठे घर से बाहर निकलो कोई
मंचों पर हँसने वालो संग मेरे भी हँस लो कोई
हृदय में पीड़ा, व्यथित मन दर्द सारे रख लो कोई
पढ़ा लिखा हूँ नहीं राह का चरित्र बता दो कोई
गली मोहल्ले भटक रहा थाम बाहें पहुँचा दो कोई
पगथलियां छोटी पड़ी पथ सहज बना दो कोई
घर मेरा दूर-भग रहा पकड़ पास दे दो कोई
#क्षात्र_लेखनी
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