रंग अंजुली में भरे दिवाकर
केसरिया रंगने को दौड़े
ढुलमुल बढ़े दिवाकर
चांदनी लजायी, हुआ गगन नारंगी
मुस्कायी रश्मि, सिंदूरी दुकूल ओढ़ाकर।।
प्रकृति मनमोहे बहुतेरे रंग ,
पल-पल निहाल रंग लगाकर।
पलास-गुलमोहर और गेंदा रंगे ,
भींगे बदरा धरा पर आकर।।
रंग अंजुली में भरे दिवाकर
हर्षित हैं संग ऋतुराज का पाकर
पगडंडी को करके सराबोर
उछले जन-जंगल को नहलाकर।।
हुलयारे बन बनाकर टोली
खेत-खलिहान अरू कोटर में जाकर।
रंगे फिर करते ठिठोली
प्रीत फागुनी गीत सुनाकर।।
थमे न पछुआ का हुड़दंग
मगन बागियों में आकर।
घेर-घेर बहुरंग कर दे
घर-घर ड्योढ़ी पर जाकर।।
#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra
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