Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रंग अंजुली में भरे दिवाकर

 


रंग अंजुली में भरे दिवाकर

केसरिया रंगने को दौड़े
ढुलमुल बढ़े दिवाकर
चांदनी लजायी, हुआ गगन नारंगी
मुस्कायी रश्मि, सिंदूरी दुकूल ओढ़ाकर।।


प्रकृति मनमोहे बहुतेरे रंग ,
पल-पल निहाल रंग लगाकर।
पलास-गुलमोहर और गेंदा रंगे ,
भींगे बदरा धरा पर आकर।।


रंग अंजुली में भरे दिवाकर
हर्षित हैं संग ऋतुराज का पाकर
पगडंडी को करके सराबोर
उछले जन-जंगल को नहलाकर।।


हुलयारे बन बनाकर टोली
खेत-खलिहान अरू कोटर में जाकर।
रंगे फिर करते ठिठोली
प्रीत फागुनी गीत सुनाकर।।


थमे न पछुआ का हुड़दंग
मगन बागियों में आकर।
घेर-घेर बहुरंग कर दे
घर-घर ड्योढ़ी पर जाकर।।


#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra





Attachments area




Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ