अधखुले-चौंधियाए नयन
विचलित है बरगद के ठांव।
जहां-तहां पसरा है सन्नाटा
सशंकित निहारे व्याकुल गांव।।
सुस्सताये छप्पर निचे
पुस दूपहरी ओढ़े छांव।
झांके झंझरी से सिकुड़े
अनमने भाव में लिपटे गांव।।
कोयलिया सुर मधुर सजाये
घुमक्कड़ भंवरों का अद्भुत दांव।
ओस चदरिया में लिपटे
धरतीपुत्रों के सुघर सुरभित गांव।।
स्वेदन बूंदों में झलके
थिरकते श्रम के नन्हे पांव।
चुपके आयी ऋतु वासंतिक
विहसे सीधे-साधे गांव।।
पवन बावली करें छेड़छाड़
बदले सयानी शरद के हाव-भाव।
प्रेम पाती लिए ढूंढे प्रियसी
ऋतुराज छुपे हैं पलास के गांव।।
#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra
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