नजरें झुका जो थी मुस्कुराती
उसे भी समय की बीमारी हो गई है।
बालकनी से हर रोज जो गुनगुनाया करती
आजकल रूठने की आदत सयानी हो गई है।।
जो घबरा जाती थी स्कूल देर से पहुचने पर
अब तो मायूस सी कहानी हो गई है।
पास से गुजरती और छेड़ जाती अक्सर
उसके लिए मस्ती अब बेईमानी हो गई है।।
अनायास ही जो कुछ बोल दिया करती थी
पर आज क्यों चटकती कड़ी हो गई है।
दौड़कर जो लताओं सी लिपट जाया करती थी
मुह लटकाये क्यों आज खड़ी हो गई है।।
अधरों के मिलन से सकुचाती थी जो
चांदनी वो आज धानी लग रही है।
देख अस्क जिसका कविता सजाती थी लेखनी
आज क्यों अनजानी - अनाड़ी लग रही है।।
वर्तमान पर तकनीकी भारी हो गई
आभासी दुनिया से आजकल यारी हो गई है।।
सामने से जो नजर झुकाये निकल जाते
उन्हें गुडमॉर्निंग भेजने की आदत पुरानी हो गई है।।
#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra
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