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नववर्ष (संवत्सर)

 

कविता :: नववर्ष ( संवत्सर) 



         ।। नववर्ष (संवत्सर) ।।


उठी लहरें मन में कल नववर्ष बधाई। 

ऊषा की बाट जोह रहे नभ में लालिमा छाई।। 


गगन सिंदूरी चादर में लिपट रहा ले अंगड़ाई। 

हो उठे रोमांचित देवता स्वर्ग से अप्सराएँ आई।। 


सजी रंग-बिरंगी फूलों से थाली। 

नई नवेली दुल्हन वसुधा लगे प्यारी।। 


प्रथम किरण आगमन से पुरी धरा नहायी। 

सुनहले नीर जग-मग खग-मृग गये लजायी।। 


बुढ़े बच्चे मिल बोले नया सवेरा आया। 

नये परिधान पहने बच्चों ने खुब छकाया। 


अराधें गृहणी गौरी गणेश संग सभी सुर। 

खुशी किसान नृत्य करने को आतुर।। 


नैतिकता के गुण संजोये स्नेह बरसाती मैया। 

संस्कारों के उदय से निर्मित चरित्र की नैया।। 


भेद भाव मिट मिटाकर भारतीय बन गये जहां। 

भाषा भोजन सजावट देशी में रंग गये यहां।। 


खुशियाँ सनातन रीति की खुशियाँ नवीन विज्ञानों में। 

अध्यात्म की नगरी काशी विज्ञान विकसित दक्षिण पठारों में।। 


मुकुट हिमाद्रि चमक उठा गले मिली भुजाएँ दोनों। 

विराट हिन्दसागर पद धुलता गुनगुनाता राष्ट्रधुन सुनो।। 


उठो भविष्य उठो रे वर्तमान उठो भारत के चीर महान। 

निहारो नवीन भाष्कर जो किरणों संग खुशियाँ लाया।। 


#क्षात्र_लेखनी_





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