Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वसंत लौट रहा मुड़कर भुवन को

 

वसंत लौट रहा मुड़कर भुवन को।

तज प्रिय स्मृति उम्मीद की छुवन को।। 


कृषकों को आशा दे मेहनत के मन को। 

उपज से सींच दे परिवार के उपवन को।। 


ग्रीष्म का मिलन झुलस देती तन को। 

हरियाली जीव जन्तु छोड़ती न जन को।। 


चहुँओर हहाकार किरणों की फुफ्कार से। 

लू के कलुष थपेड़े वसुधा के दरार से।। 


जग में भारी कोलाहल प्रकृति की मार से। 

मची खलबली प्राणियों में सौर अनल धार से।। 


रात्रि दिवस विकट भये छायी सब में मायूसी। 

वसंत विरह में लिपटे खेत खलिहान अलि प्रियसी।। 


बिछुड़न में मतवाले होकर सन्न मधुमास के मृदुभाषी। 

रूदन करे कोकिल पपिहा जैसे प्रभु मिलन को संयासी।। 


समझाये व्यथित होकर चारु चपल चंचल मन। 

मंथन कर हो मौन ये मेरे बिखरे चमन।। 


वसंत न जो जायेगा वापस भुवन को। 

उमंग ले दे पायेगा कैसे पुनः वतन को।। 


हृदय की टोकरी में स्वपनों के पुष्प संजोये। 

 दौड़ा वसंत फिर आवे भारतवर्ष की फुलवारी में।। 

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