Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बैरी पिया

 

पिया मोरे गये परदेश

क्योंकर बांधू में ये केश

ढलता जा रहा ये यौवन

सुलग सुलग जाता है तनमन

कैसे तो दिन है कटते

कैसे कटती है मेरी राते

छुरियाँ सी चलती है दिल पर

सुन सुन कर सखियन की बातें

हार श्रृंगार सब मुहँ चिड़ाते

अगन जिया की और बढ़ाते

याद आते बीते पल तो

खुद को रोक नहीं पाती हु

यादो के दरिया में तुम संग

डूब डूब में जाती हु

सुख खोजन गये परदेश

इतना भी ना जाना

साथ तुम्हारे मेरा सुख है

कहना कभी ना माना

तुम बिन कांटे बने है पलछिन

बन सकते थे जो मोती

साथ ना तुम हो याद तुम्हारी

पलकों पे है सोती

तुम क्या जानो तुमबिन कैसा

जलता है ये जीवन

आग लगी दिल की बस्ती में

कल तक था जो मधुबन

देर ना करना पिया बिना अब

और नही जी पाउंगी

साथ तुम्हारे जी ना सकी तो

मरकर साथ निभाउंगी

 

 

 

सरितापंथी राजकुमारी

 

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