Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हाँ में किन्नर हूँ ||

 

हँसते हो तुम सब मुझको देख
नाम रखते हो मेरे अनेक||
सुन्दर सुन्दर उसकी रचना
मेरी ना किसी ने की कल्पना||

 

 

ईश्वर ने किया एक नया प्रयोग
स्त्री पुरुष का किया दुरूपयोग||
जाने क्या उसके जी में आया
मुझ जैसा एक पात्र बनाया||

 

 

तुम क्या जानो मेरी व्यथा
कैसे में ये जीवन जीता||
घूंट जहर का हर पल पीता
क्या जानो मुझपे क्या बीता ||

 

 

नारी मन श्रृंगार जो करता
पुरुष रूप उपहास बनाता
तन दे दिया पुरुष का
और मन रख डाला नारी का||

 

 

गलती उसने कर डाली
तो में क्यों होता शर्मिंदा
भोग रहा हूँ में ये जीवन
रह सकता हूँ में जिन्दा||

 

 

तुमको तो दीखता है तन
मुझको तो जीना है मन||
हँस देते सब देख मुझे
हाय मेरी ना कभी लगे तुझे||

 

 

 

सरितापंथी राजकुमारी

 

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