Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिन्दगी फिसलती है कुछ अपनी ही गलती है

 

जिन्दगी फिसलती है कुछ अपनी ही गलती है
सिर्फ प्यार के सहारे ये दुनिया कहाँ चलती है

 


मैं भी खाली हाथ हूँ और तू भी खाली हाथ है
सिसक रहे है अरमां सारे दफ़न हुए जज्बात है

 


तनहा तनहा मेरी रातें कतरा कतरा सरकती है
सूनी हो गयी मेरी आँखें ख़्वाबों की बस्ती जलती है

 


बूंद बूंद ही हमें मिला है बूंद बूंद ही पीना है
चखेवा ही गया मन बेचारा आकाश तकते जीना है

 


तू क्या जाने तेरे प्यार की क्या हमको सौगात मिली
हमने दिल पे पत्थर रखा जब भी तेरी बात चली

 

 


सरिता पन्थी

 

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