ज़िद
बरसात के दिन थे ,बादल गरज रहेथे, बिजली कड़क रही थी घनघोर वर्षा हो रही थी ।एक किसान सिर पर टोपी लगाए छाता लिए तेज कदमों से भागा चला जा रहा था ,उसे अगले गांव पहुंचना था ।तूफान हो या आंधी उसको परवाह न थी क्योंकि जाना जरूरी था ।
राह में एक बूढ़ा मिला उसने पूछा," ए नेक बंदे ऐसे बदहवास,कहां दौड़े जारहे हो ?
बिना सिर उठाए, बिना चाल धीमी किए किसान ने कहा ,"अगले गांव"
बूढ़े ने कहा," कम से कम कह देते रामजी चाहेंगे तो"
किसान रुका बूढ़े की ओर देखा,बोला," रामजी चाहे या ना चाहे मुझे तो उस गांव पंहुचना ही है।"
भगवान की माया वह और कोई नहीं भगवान ही थे!
." तब तो तुम साल भर भी वहां नहीं पहुंच पाओगे ,जाओ इस कीचड़ में कूद जाओ और साल भर वहीं रहो"।
अचानक किसान मेंढक बनकर कीचड़ में कूद गया।
एक साल बीत गया ।
मेंढक फिर किसान बन गया और अपने रास्ते अगले गांव की ओर चल पड़ा ।
थोड़ी दूर जाने के बाद फिर उसे वही बूढ़ा मिला ,फिर उसने अपना प्रश्न दोहराया ,"नेक बंदे कहां जा रहे हो"?
" अगले गांव "
"रामजी चाहेंगे तो, ऐसा भी कह सकते हो"
" रामजी चाहते हैं तो ठीक ,नहीं चाहते हैं तो भी ठीक क्योंकि मैं जानता हूं आगे क्या होगा, मैं खुद ही कीचड़ में कूद जाऊंगा "
और इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला।
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